Table of content
|
मदर टेरेसा : एक महान व्यक्तित्व |
|
मदर टेरेसा : परिचय |
|
मदर टेरेसा : प्रारंभिक जीवन परिचय |
|
मदर टेरेसा : भारत आगमन |
|
कार्य : सेवा धर्म |
|
पुरस्कार व सम्मान |
|
मदर टेरेसा : मृत्यु |
|
मदर टेरेसा : शिक्षा |
मदर टेरेसा: एक महान व्यक्तित्व
जीवन सेवा है |अपना पूरा जीवन परोपकार व दूसरों की सेवा में अर्पित करने वाली मदर टेरेसा ऐसे महान
लोगों में से एक है ,जो सिर्फ व सिर्फ इंसानियत के लिए जी थी। इस संसार में तमाम दीन ,दरिद्र ,बीमार ,
असहाय व गरीबों
के लिए अपना पूर्ण जीवन अर्पित कर देने वाली मदर टेरेसा।
मदर टेरेसा: परिचय
|
मदर टेरेसा का पूरा नाम |
अगनेस गोंझा बोयाजिजू |
|
पिता का नाम |
निकोला बोयाजु |
|
माता का नाम |
द्राना बोयाजु |
|
पिता का व्यवसाय |
साधारण
व्यवसायी |
|
जन्म कब और कहां |
26 अगस्त, 1910 स्कॉप्जे (अब मसेदोनिया में) |
|
मृत्यु |
5 सितम्बर,
1997 |
|
जीवन का मूल मंत्र |
गरीब , बेसहारा, पीड़ित
लोगों की सेवा करना, उन्हें
ठीक करना , उन्हें जीवन जीने की चाह दिखाना, उन्हें
संभालना |
|
धर्म |
कैथोलिक |
|
पुरस्कार व सम्मान |
पदम श्री, नोबेल पुरस्कार शांति के लिए ,भारत रत्न , मेडल ऑफ फ्रीडम
|
|
नागरिकता |
यूगोस्लाव नागरिक (1918–1943) अल्बेनियन नागरिकता (1991-1997) भारतीय नागरिकता(1948- 1997) |
मदर टेरेसा : प्रारंभिक जीवन परिचय
वह एक अल्बेनियन परिवार में जन्मी थी। उनके पिता का नाम निकोला बोयाजु था। वह एक साधारण व्यवसायी थे। उनकी माता का नाम द्राना बोयाजु था।
जब वह सिर्फ 8 साल की थी तभी उनके पिता का निधन हो गया। उनका व उनकी बहनों का लालन पालन की सारी जिम्मेदारी उनकी माता पर आ गई।
1928 में मात्र 18 साल की उम्र में मदर टेरेसा ने सिस्टर्स ऑफ लोरेनटो में शामिल होने का फैसला किया। जिसके लिए वह आयरलैंड चली गई |वहां उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी ,क्योंकि यह लोरेनटो के लिए जरूरी था ।
18 साल की उम्र में जब उन्होंने घर छोड़ा और 87 साल की उम्र जब उनकी मृत्यु हुई तक उन्होंने अपनी मां, बहन को कभी नहीं देखा।
मदर टेरेसा : भारत आगमन
आयरलैंड से रवाना हो वह 6 जनवरी 1929 को कोलकाता ( भारत ) में लोरेटो कॉन्वेंट में पहुंचे।
4 sep 2016 को पहली बार सन्यासी पदवी मिली। उन्होंने इसके बाद अपना मूल नाम टेरेसा रखा , क्योंकि वो अपने नाम से संत थेरेस ऑस्ट्रेलिया और टेरेसा ऑफ अविला को सम्मान देना चाहती थीं इसलिए उन्होंने टेरेसा नाम चुन लिया। 1984 में वह सेंट मेरिज स्कूल के प्रधानाचार्य बनी । वह पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। वह एक रोमन कैथोलिक सन्यासी थी।
कार्य : सेवा धर्म
इन्होंने निर्मल हृदय व निर्मला शिशु भवन नाम से आश्रम खोले । असाध्य बीमारी से पीड़ित लोगों व गरीब इंसानों की स्वयं सेवा करती थी। 1946 में उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब लोगों, असहाय बीमारी से पीड़ित लोगों की सेवा में समर्पित किया। 1948 में उन्होंने अपनी इच्छा से भारतीय नागरिकता ली।
7 अक्टूबर 1950 में उन्हें मिशनरीज ऑफ चैरिटी स्थापना की अनुमति मिली । इस संस्था का मूल उद्देश्य समाज से बेघर ,बीमार गरीब लोगों की सहायता करना था । उनका एक प्रोजेक्ट गरीब बच्चों का पढ़ाना भी था। मदर टेरेसा ऐसे ही पाक् ह्दयपूर्ण, निष्पक्ष सेवा प्रदान करती रही। जीवन भर इंसानियत के लिए व इंसानियत का काम करती रही। शायद इसलिए उन्हें मां कहा गया। मां से अपने बच्चों का दर्द देखा नहीं जाता और उनके लिए भी सारे गरीब , लाचार, सारे पीड़ित और जो कोई भी दर्द में है , उनका बच्चा था और उसे ठीक करना, उसे संभालना, उसे जीवन जीने की उम्मीद देना यही उनके जीवन का लक्ष्य व उद्देश्य था।
पुरस्कार व सम्मान
उनकी सेवाओं के लिए उन्हें अलग-अलग पुरस्कारों एवं सम्मान से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उनकी निष्पक्ष सेवा को देखते हुए उन्हें 1962 में पदम श्री से सम्मानित किया ।1979 में उन्हे नोबेल प्राइज शांति के लिए प्रदान किया गया। 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से उन्हें सम्मानित किया गया । उन्होंने नोबेल प्राइज की धनराशि $142000 को गरीबों में बांट दिया। 1985 में अमेरिका ने मेडल ऑफ फ्रीडम अवार्ड से नवाजा।
मदर टेरेसा मृत्यु
हालांकि अपने जीवन के अंतिम समय में उन्होंने शारीरिक कष्ट के साथ-साथ मानसिक कष्ट भी बहुत
झेले, क्योंकि उनके ऊपर कई तरह के आरोप लगाए गए। उन पर गरीबों की सेवा के बदले धर्म
बदलवाकर ईसाई बनाने का आरोप लगाया गया। भारत के पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में उनकी निंदा
हुई । उन्हें ईसाई धर्म का प्रचारक माना जाता था, जो कि सच्चाई बिल्कुल भी ना थी ।
उनकी बढ़ती उम्र के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य भी गिरती चली गई। 1984 में पॉप जॉन पाँव ।। से
मिलने के दौरान उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा । 1990 में दूसरी बार उन्हें दिल का दौरा पड़ा।
उन्हें कृत्रिम पेसमेकर लगाया गया, ताकि उनके दिल को सहारा मिल सके। 1991 में मेक्सिको में उन्हें
निमोनिया व ह्रदय परेशानी हुई। 13 मार्च 1997 में उन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी के मुखिया पद को
छोड़ दिया । 5 सितंबर 1997 को वह (मदर टेरेसा) हमेशा के लिए स्वर्ग सिधार गए । मदर टरेसा की
मृत्यु के समय तक मिशनरीज़ ऑफ चेरिटी 123 देशों में 610 मिशन नियंत्रित कर रही थी। उनकी
मृत्यु के समय राजकीय शोक सम्मान के साथ अंत्येष्टि हुई थी। मदर टेरेसा को याद किया जाता है,
उनके कर्मों के लिए , वह जो हमें जिंदगी जीना सिखाते है।
सेवा परमो धर्म है.......
हमें गर्व है उनके जीवन पर उनके, उनके द्वारा किए गए कार्यों पर , उन पर ,उनकी दी गई शिक्षाओं
पर।।
मदर टेरेसा: शिक्षा
कल बीत गया है कल अभी आया नहीं है,
हमारे पास सिर्फ आज है, चलिए शुरू करें।
शांति की शुरुआत मुस्कुराहट से होती है
जीवन एक संघर्ष है, इसे स्वीकार करें।
दया और प्रेम भले ही छोटे शब्द हो सकते है।
लेकिन इनकी गूंज बहुत ही उन्नत होती है।
आपकी जिन्दगी में कुछ लोग आशिर्वाद की तरह होते है।
लेकिन कुछ लोग सबक की तरह होते है।
खुबसूरत लोग हमेशा अच्छे नहीं होते।
लेकिन अच्छे लोग हमेशा खुबसूरत होते है।
हमें हमेशा मुस्कान के साथ एक दूसरे के साथ मिलना चाहिए।
क्योंकि मुस्कान
ही प्रेम की शुरूआत है।








